Shodashi No Further a Mystery

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The mantra seeks the blessings of Tripura Sundari to manifest and fulfill all wished-for outcomes and aspirations. It is believed to invoke the blended energies of Mahalakshmi, Lakshmi, and Kali, with the final word aim of attaining abundance, prosperity, and fulfillment in all facets of life.

इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?

सच्चिद्ब्रह्मस्वरूपां सकलगुणयुतां निर्गुणां निर्विकारां

हर्त्री स्वेनैव धाम्ना पुनरपि विलये कालरूपं दधाना

Shiva after the death of Sati had entered right into a deep meditation. With no his Electricity no creation was attainable which brought about an imbalance in the universe. To carry him away from his deep meditation, Sati took beginning as Parvati.

अष्टारे पुर-सिद्धया विलसितं रोग-प्रणाशे शुभे

यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।

लक्ष्या मूलत्रिकोणे गुरुवरकरुणालेशतः कामपीठे

हस्ते चिन्मुद्रिकाढ्या हतबहुदनुजा हस्तिकृत्तिप्रिया मे

लब्ध-प्रोज्ज्वल-यौवनाभिरभितोऽनङ्ग-प्रसूनादिभिः

The identify “Tripura” means the a few worlds, along with the term “Sundari” usually means by far the most attractive woman. The name on the Goddess simply signifies the most lovely Woman in more info the three worlds.

The noose symbolizes attachments, whereas the goad represents contempt, the sugarcane bow demonstrates wishes, plus the flowery arrows stand for the five feeling organs.

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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